सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियॉं
कुमारसभा पुस्तकालय अपने जन्म से मात्र पुस्तकालय या वाचनालय ही नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय चेतना एवं सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता का भी केन्द्र बना हुआ है। इसके सदस्य बाल विवाह, मृतक भोज एवं असमय ही विधवा हुई बहनों की समस्याओं को हल करने में पूरी शक्ति से जूझे तथा अमानवीय रूढि़यों का डटकर विरोध किया। सन् 1928 के आस-पास देशभक्तों पर पुलिस की ज्यादतियों निरन्तर बढ़ रहीं थीं। स्व. नेवटियाजी उस समय कुमारसभा पुस्तकालय के मंत्री तो थे ही, साथ में ‘कलकत्ता आर्टस एण्ड क्राफ्टस एक्जीवीशन’ के भी सचिव थे। उन्होंने उस समय पुलिस के अत्याचारों को दिग्दर्शित करने वाली मिट्टी के मॉडलों की एक प्रदर्शनी लगवाई जिसका उद्-घाटन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने किया। इस हेतु नेवटियाजी को जेल भी जाना पड़ा। ‘नमक सत्याग्रह’ एवं ‘करो या मरो’ आन्दोलन में भी भोजन व्यवस्था पुस्तकालय के कार्यकर्त्ताओं ने सम्भाली ।
सन् 1975 ई. में देश में आपात-स्थिति लगाकर जनता की स्वतन्त्रता पर कुठाराघात किया गया, लोग भयभीत हो गए। उस स्थिति में भी कुमारसभा के कार्यकर्त्ताओं ने हल्दीघाटी चतु:शती के द्वि-दिवसीय कार्यक्रम के माध्यम से जनजागरण का ओजपूर्ण शंख फूँका। तानाशाही के सीने पर वज्राघात हुआ, कलकत्ता से दिल्ली तक समारोह की गूंज तरंगित हो उठी। कार्यकर्त्ताओं को काफी कष्ट भी उठाने पड़े, कारावरण भी करना पड़ा, पर वह तो स्वाधीनता प्रेमियों का पुरस्कार था। कुमारसभा की परम्परा में यह कुछ नया नहीं था।
विवेकानन्द सेवा-सम्मान
वर्तमान परिस्थिति में राष्ट्रीय अखण्डता एवं इसके परम्परागत सांस्कृतिक विकास के रक्षणार्थ कार्यरत व्यक्तियों को समाज के सामने लाने की कुमारसभा ने अत्यधिक आवश्यकता महसूस की। एतदर्थ स्वामी विवेकानन्द की 125 वीं जन्मजयन्ती के शुभावसर पर ‘विवेकानन्द सेवा पुरस्कार’ (21 हजार रुपये), अब ‘विवेकानन्द सेवा सम्मान’(51 हजार रुपये) के नाम से नगद पुरस्कार प्रारम्भ किया गया जिसे प्रतिवर्ष एक ऐसे व्यक्ति को समर्पित किया जाता है जो स्वामीजी के चिन्तन एवं आदर्श को अपने जीवन का पाथेय बनाकर भारतमाता के आत्मविस्मृत, उपेक्षित एवं अभावग्रस्त पुत्रों के कल्याण हेतु राष्ट्र देवता की सेवा में कार्यरत है। सर्वप्रथम 1987 ई. का सम्मान ‘रानी मॉं’ के नाम से विख्यात नागा स्वतन्त्रता सेनानी रानी गाइदिन्ल्यू को समर्पित किया गया। कुमारसभा का यह सेवा सम्मान समाज को इस ओर विचार करने की दिशा में क्रान्तिकारी प्रयास सिद्ध हुआ है। इस सम्मान की अखिल भारतीय स्तर पर सर्वत्र चर्चा एवं प्रशंसा हुई है।
सम्मान श्रृंखला का विवरण
(1987 ई.) रानी गाईदिन्ल्यू ( नागालैण्ड) (1988 ई.) एच. अण्डरसन मावरी ( मेघालय) (1989 ई.) स्वामी लक्ष्मणानन्द (उड़ीसा)
(1990 ई.) बालासाहब देशपाण्डे (मध्यप्रदेश) (1991 ई.) डॉ. एच. सुदर्शन (कर्नाटक) (1992 ई.) डॉ. अनिल देसाई (गुजरात)
(1993 ई.) अशोक भगत ( बिहार) (1994 ई.) आण्णा हजारे (महाराष्ट्र) (1995 ई.) दामोदर गणेश बापट ( मध्यप्रदेश)
(1996 ई.) दिलीप सिंह जू देव ( मध्यप्रदेश) (1997 ई.) अवनी भूषण मण्डल (प. बंगाल) (1998 ई.) एन. सी. जेलियांग (नागालैण्ड)
(1999 ई.) अशोक श्रीधर वर्णेकर (महाराष्ट्र) (2000 ई.) स्वामी अमरानन्द (मध्यप्रदेश) (2001 ई.) देवकुमार सराफ ( प. बंगाल)
(2002 ई.) राजेन्द्र सिंह (राजस्थान) (2003 ई.) स्वामी असीमानन्द ( गुजरात) (2004 ई.) डॉ. नारायणसिंह माणकलाव ( राजस्थान)
(2005 ई.) भिकूजी रामजी उर्फ दादा इदाते (महाराष्ट्र) (2006 ई.) डॉ. विश्वामित्र ( मेघालय) (2007 ई.) डॉ. नित्यानन्द (उत्तराखण्ड)
(2008 ई.) एम. ए. कृष्णन (केरल) (2009 ई.) स्वामी संवित् सोमगिरि ( राजस्थान) (2010 ई.) आशीष गौतम ( उत्तराखण्ड)
(2011 ई.) ब्रह्मचारी मुराल भाई ( पं. बंगाल) (2012 ई.) सकुमार रायचौधरी ( पं. बंगाल) (2013 ई.) श्री सत्यानन्द महापीठ ( पं.बंगाल)
(2014 ई.) सरदारमल कांकरिया (प.बंगाल) (2015) डॉ0 बिन्देश्वर पाठक (नई दिल्ली) (2016) श्री विनायक लोहनी (कोलकाता)
डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान
स्वतन्त्रता के पश्चात् नैतिक मूल्यों में ह्रास के फलस्वरूप राष्ट्रवादी दृष्टिकोण की सर्वत्र कमी महसूस की जा रही है। ऐसे आड़े समय में कुमारसभा ने राष्ट्रवादी सर्जकों को भी सम्मानित करने की आवश्यकता महसूस की। एतदर्थ कुशल संगठक एवं प्रखर राष्ट्रभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जन्म शताब्दी पर उनकी स्मृति में भारत की सनातन प्रज्ञा को अपने जीवन का पाथेव बनाकर राष्ट्र जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों को सम्मानित करने हेतु ‘डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा पुरस्कार’ (अब ‘डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान’) के नाम से 21 हजार रुपये (अब 51 हजार रुपये) के नगद पुरस्कार की योजना बनी एवं 1990 ई. का प्रथम सम्मान संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर (नागपुर) को दिया गया।
सम्मान श्रृंखला का विवरण
(1990 ई.) डॉ. श्रीधरभास्करवर्णेकर (नागपुर) (1991 ई.) रामस्वरूप (दिल्ली) (1992 ई.) डॉ. विद्यानिवासमिश्र (दिल्ली)
(1993 ई.) दत्तोपंतठेंगड़़ी (दिल्ली) (1994 ई.) कर्पूरचन्दकुलिश (जयपुर) (1995 ई.) अशोकसिंहल (इलाहाबाद)
(1996 ई.) एम. वी. कामथ (मुम्बई) (1997 ई.) मोरोपंतपिंगले (नागपुर) (1998 ई.) वचनेशत्रिपाठी (लखनऊ)
(1999 ई.) के.आर. मलकानी (दिल्ली) (2000 ई.) डॉ. नरेन्द्रकोहली (दिल्ली) (2001 ई.) मुजफ्फरहुसैन (मुंबई)
(2002 ई.) डॉ. प्रतापचन्द्रचन्द्र (कोलकाता) (2003 ई.) डॉ.मुरलीमनोहरजोशी (इलाहाबाद) (2004 ई.) बलवन्तरावमोरेश्वर पुरन्दरे (पुणे)
(2005 ई.) माणिकचन्द्रवाजपेयी (ग्वालियर) (2006 ई.) डॉ. कुसुमलताकेडिया (वाराणसी) (2007 ई.) डॉ. एस. एल. भैरप्पा (मैसूर)
(2008 ई.) डॉ. एस. कल्याणरमण (चेन्नई) (2009 ई.) स्वामीराघवेश्वरभारती (शिमोगा) (2010 ई.) राजेन्द्रअरुण (मारीशस)
(2011 ई.) डॉ. कृष्णबिहारीमिश्र (कोलकाता) (2012 ई.) योगेन्द्रश्रीवास्तव (आगरा) (2013 ई.) सोहनलालरामरंग (दिल्ली)
(2014 ई.) प्रो. सतीशचन्द्रमित्तल (सहारनपुर) (2015 ई.) श्री दीनानाथ बत्रा (नई दिल्ली) (2016 ई.) श्रीमती शुभांगी मुकुन्द भडभडे (नागपुर)
राष्ट्रीय शिखर प्रतिभा सम्मान
कुमारसभा ने अपने शताब्दी दशक में वर्ष 2011 ई. में ‘राष्ट्रीय शिखर प्रतिभा सम्मान’ का प्रवर्तन किया जिसमें प्रतिवर्ष ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व को समादृत किया जाता है जिसने राष्ट्रजीवन की किसी एक विधा में अपने अप्रतिम अवदान से समाज एवं राष्ट्र को समृद्ध किया है। इस सम्मान का प्रथम पुष्प उद्योग जगत के भीष्म पितामह एवं राष्ट्र गौरव बिरला दम्पति श्री बसंत कुमार बिरला एवं डॉ. सरला जी बिरला को 9 जनवरी 2011 ई. को स्वामी गिरिशानन्दजी, वृदांवन के हाथों प्रदान किया गया। द्वितीय पुष्प धर्म एवं संस्कृति के युगचेता क्रांतिकारी संत तथा भारतमाता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि महाराज को 18 नवम्बर 2012 ई. को पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. मुरलीमनोहर जोशी के हाथों प्रदान किया गया। तृतीय पुष्प शास्त्रीय कण्ठ संगीत के विश्व विख्यात साधक, संगीत मार्तण्ड पं. जसराज को 23 मार्च 2014 ई. को स्वरसम्राज्ञी श्रीमती गिरिजा देवी के हाथों प्रदान किया गया।
गीता प्रतियोगिता पुरस्कार
राष्ट्रीय पुनरुत्थान में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का सहभागी होना भी आवश्यक है। कुमारसभा की महिला समिति ने इस दृष्टि से सं. 2045 विक्रम (1988 ई.) में छात्राओं में सुसंस्कार एवं भारतीयता के प्रति गौरव बोध हेतु आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री की धर्मपत्नी स्व. श्रीमती इदिन्रा शास्त्री की स्मृति में ‘गीता प्रतियोगिता पुरस्कार’ की योजना बनाई। 2045 विक्रमाब्द (1988) से प्रारंभ हुई यह प्रतियोगिता 13 वर्षों तक चली जिसमें कलकत्ता तथा निकटवर्ती अंचल के विभिन्न विद्यालयों की सैकड़ों छात्राऍं पुरस्कृत की गई।
इन्दिरा विष्णुकान्त शास्त्री मातृशक्ति सम्मान
गीता प्रतियोगिता पुरस्कार को नवीन एवं व्यापक आयाम प्रदान करने तथा नारी की क्षमता एवं तेजस्विता के प्रति श्रद्धा निवेदन करने हेतु 2002 ई. से ‘मातृशक्ति सम्मान’ का प्रारम्भ किया गया। जीवन के विविध क्षेत्रों में कर्मरत महिलाओं में से प्रतिवर्ष ऐसी विशिष्ट महिला को पुस्तकालय ने समादृत करने का संकल्प किया जिसने अपनी प्रतिभा, योग्यता एवं साधना से क्षेत्र-विशेष को समृद्ध किया हो। प्रशिस्त पत्र एवं 21 हजार रुपये की नकद राशि से युक्त प्रथम सम्मान शास्त्रीय कंठ-संगीत की विश्वविख्यात गायिका स्वर सम्राज्ञी पद्मभूषण श्रीमती गिरिजा देवी को 24 नवम्बर 2002 ई. को एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया। इस आयोजन में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री प्रो. रीता वर्मा, प्रख्यात रवीन्द्र संगीत गायिका श्रीमती सुचित्रा मित्र तथा युवा कवि एवं संगीत मर्मज्ञ श्री यतीन्द्र मिश्र (अयोध्या) उपस्थित थे। द्वितीय सम्मान 2003 ई. में वात्सल्य ग्राम की संचालिका पूज्या साध्वी ऋतंभरा (दीदी मॉं), वृंदावन को एवं तीसरा सम्मान 2004 ई. में डोंगरी एवं हिन्दी की सुप्रसिद्ध सेविका पद्मश्री पद्मा सचदेव (दिल्ली) को प्रदान करने के उपरान्त अपरिहार्य कारणों से इसे बन्द करना पड़ा ।
आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला
पुस्तकालय के प्रेरणास्रोत, मार्गदर्शक तथा हमारी विविध गतिविधियों से अनन्य रूप से संबद्ध आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के देहावसान (17 अप्रैल 2005 ई.) के बाद संस्था ने उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष एक व्याख्यानमाला समायोजित करने का निर्णय किया। इसका प्रथम आयोजन 6 मई 2006 ई. को ‘हिन्दी कविता की तेजस्विता’ विषय पर केन्द्रित था। मुख्य वक्ता थे प्रख्यात विद्वान डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित (लखनऊ) तथा अतिथि कवि के रूप में उपस्थित थे तेजस्वी गीत-ग़ज़लकार डॉ. शिव ओम अंबर (फर्रुखाबाद)। दूसरे वर्ष (2007 ई.) के व्याख्यान का विषय था ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी और हमारा समय’ । इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे प्रख्यात लेखक-संपादक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय (नई दिल्ली) तथा अध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे प्रख्यात हिंदी-प्रेमी न्यायमूर्ति श्री प्रेमशंकर गुप्त (इलाहाबाद)। तीसरे वर्ष (2008 ई.) का आयोजन ‘भारतीय राजनीति: दशा और दिशा’ विषय पर केन्द्रित था जिसमें मुख्य वक्तव्य रखा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा साहित्यकार श्री शांता कुमार ने, अध्यक्षता की उत्तरप्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष सुकवि श्री केशरीनाथ त्रिपाठी (इलाहाबाद) ने । चतुर्थ आयोजन (2009 ई.) स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 125 वीं पुण्य तिथि पर ‘वीर सावरकर: एक विरल योद्धा’ विषय पर केन्द्रित था जिसमें प्रभावी वक्तव्य रखा डॉ. हरीन्द्र श्रीवास्तव (गुरु ग्राम) एवं डॉ. सुधाकर राव भालेराव (नागपुर) ने तथा अध्यक्षता की पांचजन्य के पूर्व संपादक तथा श्यामाप्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान (दिल्ली) के निदेशक श्री तरुण विजय ने।पंचम् आयोजन (2010 ई.)में मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात ललित निबंधकार एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने ठाकुर रामकृष्ण परमंहस पर केन्द्रित ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ पर भावपूर्ण व्याख्यान दिया। षष्ठ आयोजन (2011 ई.) में ‘हिन्दी ग़ज़ल :विचार भंगिमा एवं संवेदना’ विषय पर ओजस्वी व्याख्यान दिया ग़ज़लकार श्री शिवओम अम्बर ने। सप्तम् आयोजन (2012 ई.) में ‘सन्तों की जीवन दृष्टि और हमारा समय’ विषय पर अपना वक्तव्य रखा प्रख्यात शिक्षाशास्त्री एवं मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. देवेन्द्र दीपक (भोपाल) ने। अष्टम् आयोजन (2013 ई.) में ‘विज्ञान विद्या और हिन्दी’ विषय पर विज्ञान परिषद प्रयाग के प्रधानमंत्री तथा ‘विज्ञान’ पत्रिका के सम्पादक डॉ. शिवगोपाल मिश्र (इलाहाबाद) ने एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता की विज्ञान परिषद प्रयाग के उपसभापति डॉ. कृष्ण बिहारी पाण्डेय ने। नवम् आयोजन (2014 ई.) में ‘बनते बिगड़ते सम्बन्धों के नाटककार मोहन राकेश’ विषय पर नाट्य संस्थान एवं अनामिका की निदेशक डॉ. प्रतिभा अग्रवाल ने व्याख्यान रखा।
संस्कार सक्षम प्रकाशनों के साथ साहित्य के मानक ग्रंथों का प्रकाशन
कुमारसभा ने न केवल सत्साहित्य को अपने संग्रह में प्राधान्य दिया है, बल्कि इसने संस्कार सक्षम प्रकाशनों की अपनी सुदृढ़ परम्परा भी कायम की है, जिसकी साहित्यिक एवं सामाजिक क्षेत्र में सर्वत्र प्रशंसा हुई है। ‘यंग इण्डिया’ में प्रकाशित महात्मा गांधी के अग्रलेखों के अनुवाद एवं मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास अहंकार के प्रकाशन के बाद कुछ वर्ष तक यह परम्परा अवरुद्ध रही। बाद में सर्वश्री नन्दलाल जैन, जुगलकिशोर जैथलिया एवं शिवरतन जासू द्वारा कार्यभार संभालने के पश्चात् यह पुनर्जीवित हुई। परवर्तीकाल में श्री जैथलियाजी के मार्गदर्शन में इस टीम में श्री विमल लाठ, श्री शिवरतन जासू, डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी , महावीर बजाज, डॉ. उषा द्विवेदी एवं श्रीमती दुर्गा व्यास प्रभृति समय-समय पर जुड़ते गए एवं एक के पश्चात् एक प्रकाशन लगातार किए गए यथा- 1975 ई. में शिवाजी राज्यारोहण त्रिशताब्दी स्मारिका: 1976 ई. में हल्दीघाटी चतु:शती स्मारिका, 1977 ई. में वन्देमातरम् शतवार्षिकी स्मारिका, 1978 ई. में सूर पंचशती एवं हीरक जयन्ती स्मरिका तथा ‘सूरदास : विविध संदर्भों में’ ग्रन्थ, 1979 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय बालवर्ष स्मारिका , 1982 ई. में समर्थ गुरु रामदास की 300वीं पुण्यतिथि पर ‘सन्त जिन्होंने देश जगाया’ स्मारिका एवं ‘बड़ाबाजार के कार्यकर्त्ता-स्मरण एवं अभिनन्दन’ ग्रन्थ, 1984 ई. में स्वातंत्र्यवीर सावरकर जन्म शताब्दी समारिका एवं बंगला भाषा में ‘चिन्तानायक वीर सावरकर’ ग्रन्थ, 1989 ई. में हिन्दू राष्ट्र के नवोदय के स्रष्टा एवं युगद्रष्टा डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जन्म शतवार्षिकी पर ‘डॉ. हेडगेवार जन्मशती स्मारिका’ , 1990 ई. में भगवान राम पर छत्तीसगढ़ी जनकवि गोपालदास की 300 वर्ष पुरानी ब्रजभाषा की अप्रकाशित अनुपम कृति ‘राम प्रताप’ काव्य ग्रन्थ प्रकाशित किया गया।
1991 ई. में श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष में शहीद कारसेवकों एवं हुतात्माओं तथा अयोध्या सम्बन्धित रचनाओं का संकलन ‘फिर से बनी अयोध्या योध्या’ काव्य ग्रन्थ, 1992 ई. में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के सशक्त मासिक ‘कल्याण’ के पूर्व सम्पादक, प्रखर देशभक्त एवं अद्वितीय कर्मयोगी भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार की जन्म शतवार्षिकी पर ‘भाईजी हनुमानप्रसाद पोद्दार जन्म शतवार्षिकी स्मारिका’ एवं 1994 ई. में प्रखर राजनेता एवं साहित्यकार श्री अटल बिहारी वाजपेयी की चुनी हुई कविताओं का संग्रह ‘अमर आग है’ काव्य ग्रन्थ, 1997 ई. में हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार महाप्राण निराला की जन्मशती पर ‘निराला जन्मशती स्मारिका’ तथा निराला साहित्य पर आलोचनात्मक ग्रन्थ ‘महाप्राण निराला: पुनर्मूल्यांकन’ प्रकाशित हुए। 1998 ई. में गोस्वामी तुलसीदास की 500वीं जयंती पर उनके सर्वाधिक प्रचलित ग्रन्थ श्री रामचरितमानस की पंक्तियों का अकारादि क्रमानुसार कोश ‘मानस अनुक्रमाणिका’ का विद्वानों तथा मानस प्रेमियों ने समान रूप से स्वागत किया। 1999 ई. में पुस्तकालय ने आचार्य विष्णुकांत शास्त्री की कविताओं का संकलन ‘जीवन पथ पर चलते-चलते’ प्रकाशित किया। संत कबीर की 600वीं जयन्ती के अवसर पर पुस्तकालय ने अपने गौरवशाली प्रकाशनों की कड़ी में एक और भव्य कृति प्रकाशित की। ‘कबीर अनुशीलन’ के नाम से 2000 ई. में प्रकाशित इस ग्रन्थ में संत कबीर पर देश के चुने हुए 37 विद्वानों के सुचिंतत आलेख संकलित किए गए हैं। 2001 ई. में महान देशभक्त, कुशल सांसद, उत्कृष्ट शिक्षाशास्त्री एवं निर्भीक वक्ता डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जन्मशती पर ‘स्मारिका’ प्रकाशित हुई। 2002 ई. में सुप्रतिष्टित कवि श्री शिव ओम अम्बर की काव्य कृति ‘शब्दों के माध्यम से अशब्द तक’ तथा ओजस्वी कवि डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी की काव्य पुस्तक ‘राम-श्याम: युगल शतक’ का प्रकाशन हुआ।
2003 ई. में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मशती पर एक संग्रहणीय स्मारिका का प्रकाशन किया गया। आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के 75वें जन्मदिन के अवसर पर वर्ष 2003 ई. में पुस्तकालय द्वारा उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का दो खंडों में प्रकाशित ‘विष्णुकांत शास्त्री : चुनी हुई रचनाऍं’ शीर्षक कृति का लोकार्पण किया तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने। इसी आयोजन में पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित एवं श्रीमती तारा दूगड़ द्वारा रचित कृति ‘आचार्य विष्णुकांत शास्त्री: व्यक्ति एवं रचनाकार’ का लोकार्पण प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली ने किया। 17 अगस्त 2003 ई. को पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी की कृति ‘हिंदी उपन्यास और अमृतलाल नागर’ का लोकार्पण राजभवन लखनऊ में एक भव्य समारोह में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने किया।
28 नवम्बर 2004 ई. को डॉ. उषा द्विवेदी रचित कृति ‘निराला का कथा साहित्य : वस्तु और शिल्प’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। 12 दिसम्बर 2004 ई. को पुस्तकालय ने ‘आचार्य विष्णुकांत शास्त्री अमृत महोत्सव अभिनंदन ग्रंथ’ प्रकाशित किया। इस भव्य ग्रन्थ का लोकार्पण किया कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने। फरवरी 2006 ई. में डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी रचित साहित्यिक निबंधों की कृति ‘विचार विविधा’ का लोकार्पण सिक्किम के तत्कालीन राज्यपाल श्री वी. रामाराव ने किया। प्रकाशनों के इसी क्रम में महानगर के साहित्यकार श्री राधामोहन उपाध्याय रचित ‘भारत विजयम्’ कृति,डॉ. सैयद महफूज हसन रिज़वी ‘पुण्डरीक’ की ‘अस्मिता’ काव्य–पुस्तक तथा श्री मुरारीलाल डालमिया की काव्य-कृतियॉं ‘प्रेम मुक्तक’ एवं ‘प्रेमडगर’ भी प्रकाशित हुई।
पुस्तकालय ने 2006 ई., 2008 ई. एवं 2011 ई. में आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के गीता-प्रवचनों की कृति ‘गीता-परिक्रमा’ के तीन खंड प्रकाशित किए जिनकी पर्याप्त प्रशंसा प्राप्त हुई है। तीनों खण्डों का प्रकाशन श्री नन्दलाल शाह एवं उनके आत्मज श्री किशलय शाह के सौजन्य से हुआ। वर्ष 2009 ई. में स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 125वीं जयन्ती पर 400 पृष्ठों की एक भव्य स्मारिका प्रकाशित की गई जो देश भर में प्रशंसित हुई। 2012 ई. में कुमारसभा के मार्गदर्शक कर्मयोगी श्री जुगलकिशोर जैथलिया के अमृत महोत्सव अभिनन्दन समारोह में उनके जीवन एवं कर्तृत्व पर ‘कर्मयोग का पथिक’ ग्रन्थ प्रकाशित किया गया जिसका विमोचन पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने किया। 2013 ई. में राष्ट्रीय चेतना के प्रतिष्ठित कवि डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी की काव्यकृति ‘पलकों पर इन्दुधनुष’ एवं महाकवि गुलाब खण्डेलवाल की ‘महाकवि गुलाब खण्डेलवाल : चुनी हुई रचनायें’ का प्रकाशन हुआ।
कौन्तुभ जयन्ती कार्यक्रम
कुमारसभा ने अपने गौरवमय इतिहास के 75 वें वर्ष के उपलक्ष्य में तीन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए। प्रथम कार्यक्रम था 13 अगस्त 1994 ई. को प्रखर राजनेता, ओजस्वी वक्ता एवं साहित्यकार श्री अटल बिहारी वाजपेयी का एकल काव्य–पाठ। इस कार्यक्रम की केवल महानगर में ही नहीं बल्कि सारे देश में भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। इस दिन श्री अटलजी की चुनी हुई कविताओं का एक संग्रह ‘अमर आग है’ का भी लोकार्पण किया गया। दूसरा कार्यक्रम था 14 अगस्त 1994 ई. को ‘राष्ट्र के विकास की दिशा –स्वदेशी’ पर व्याख्यान माला का आयोजन, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, प्रखर राजनेता श्री गोविन्दाचार्य एवं स्वदेशी जागरण मंच के उपाध्यक्ष श्री एस. गुरुमूर्ति के सारगर्भित व्याख्यान हुए। तीसरा एवं समापन कार्यक्रम था 10 दिसम्बर 1995 ई. को अपने ही संस्थापक स्व. राधाकृष्ण नेवटिया की पुण्य-स्मृति में महानगर की विभिन्न सेवा-संस्थाओं के आधारस्तम्भ कतिपय वरिष्ठ समाजसेवियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का ‘सम्मान-समारोह’ जिसमें ऋषिप्रवर श्री नानाजी देशमुख ने कोलकाता के सात महानुभावों यथा सर्वश्री डॉ. सुजित धर, पुरुषोत्तमदास चितलांगिया, पुष्करलाल केडिया, महावीर प्रसाद नारसरिया, सरदारमल कांकरिया, जसवंतसिंह मेहता एवं सीताराम केडिया प्रभृति को ‘राधाकृष्ण नेवटिया सेवा-सम्मान’ से सम्मानित किया।
विशिष्ट साहित्यिक समारोह
1996 ई. में निराला जन्मशती पर 4 विचार गोष्ठियॉं कलकत्ते में तथा उन्नाव (उ.प्र.) और कानपुर में एक-एक गोष्ठी पुस्तकालय के तत्त्वावधन में आयोजित की गई। समापन समारोह में महाप्राण निराला विरचित गीतों की भावपूर्ण संगीतात्मक प्रस्तुति महानगर के विशिष्ट कलाकारों ने की। इस कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पद्ममभूषण पं. विष्णु गोविन्द जोग विशेषरूप से उपस्थित थे। आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री के नेतृत्व में साहित्यकारों का ग्यारह सदस्यीय दल महाप्राण के पैतृक ग्राम गढ़ाकोला (उन्नाव) गया। इस दल ने अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद, पं. प्रताप नारायण मिश्र, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र, आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी तथा हास्य कवि रमई काका के गॉंवों का भी परिदर्शन किया। निराला जन्मशती पर एक भव्य स्मारिका के अतिरिक्त एक आलोचनात्मक ग्रन्थ ‘महाप्राण निराला : पुनर्मूल्यांकन’ (संपादक: डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी, डॉ. वसुमति डागा) प्रकाशित हुआ, जिसका लोकार्पण 1 फरवरी 1998 ई. (वसंत पंचमी) को सम्पन्न हुआ। आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री के विशेष प्रयासों के फलस्वरूप महाप्राण निराला के जन्म स्थान महिषादल (प. बंगाल) में निराला की मूर्ति स्थापन का पुस्तकालय का प्रस्ताव केन्द्र सरकार ने स्वीकार किया। केन्द्र सरकार ने इस हेतु 2 लाख रुपए का अनुदान ‘पश्चिम बंग बंगला अकादमी’ के माध्यम से दिया। निराला की आवक्ष प्रतिमा की स्थापना 18 जून 2002 ई. को महिषादल (प.बंगाल) में समारोहपूर्वक की गयी। इसका लोकार्पण किया उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री ने।
1997 ई. में कवि शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास की पंचशती के उपलक्ष्य में पुस्तकालय ने चार गोष्ठियों आयोजित की जिसमें वक्ताओं ने गोस्वामीजी के विविध पक्षों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर 21 सितम्बर 1997 ई. को स्वर सम्राज्ञी गिरिजा देवी की अध्यक्षता में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्था ‘सौरभ’ के कलाकारों ने रामचरितमानस के ‘राम-जन्म’ एवं ‘राम-विवाह’ प्रसंगों पर भावपूर्ण नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। 31 मई 1998 ई. को पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित ‘मानस-अनुक्रमणिका’ (संपादक: डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी, डॉ. उषा द्विवेदी) ग्रन्थ का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। यह ग्रन्थ गोस्वामी तुलसीदास की कालजयी कृति ‘श्रीरामचरितमानस’ का अकारादिक्रमानुसार संदर्भ कोश है।
1999 ई. में कबीर षष्ठशती के अवसर पर पुस्तकालय ने तीन संगोष्ठिायों आयोजित की जिसमें वक्ताओं ने संत कबीर की रचनाओं की मार्मिकता को उद्घाटित किया। संत कबीर पर पुस्तकालय द्वारा परिकल्पित एक आलोचना-ग्रन्थ ‘कबीर अनुशीलन’ (संपादक: डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी) का लोकार्पण 31 जुलाई 2000 ई. को हुआ।
हिंदी के मूर्धन्य समालोचक आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी की जन्मशती का आयोजन 25 मई 2007 र्इ. को किया गया जिसमें डॉ. शिवकुमार मिश्र (गुजरात), डॉ. इंद्रनाथ चौधरी (कोलकाता), डॉ. विजय बहादुर सिंह (भोपाल) तथा डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र (कोलकाता) ने अपने विचार रखे।
24 फरवरी 2008 ई. को छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा की जन्मशती के अवसर पर उनके गीतों की संगीतात्मक प्रस्तुति की गर्इ। कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित थीं पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती रीता वर्मा। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मशती पर 11 जुलाई 2008 ई. को विविध विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा ‘दिनकर-काव्य-आवृत्ति’ के एक कार्यक्रम के अतिरिक्त प्रभावी विचार गोष्ठी वाला एक अन्य समारोह भी 6 दिसम्बर 2008 ई. को आयोजित किया गया जिसमें डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (गोरखपुर) तथा डॉ. शंभुनाथ (लखनऊ) ने अपने वक्तव्यों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। लोकप्रिय कवि डॉ. हरिवंशराय बच्चन जन्मशती के उपलक्ष में 29 जुलाई 2009 र्इ. को ‘कवि प्रणाम’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें बच्चन विरचित लोकप्रिय गीतों का सस्वर पाठ करने के अतिरिक्त बच्चन साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. शम्भुनाथ का ओजस्वी व्याख्यान हुआ। 6 मार्च 2010 ई. को डॉ. हरीन्द्र श्रीवास्तव द्वारा सम्पादित सावरकर दैनंदिनी ‘सिंह गर्जना’ का कोलकाता लोकार्पण समारोह आचार्य श्री धर्मेन्द्रजी की अध्यक्षता में किया गया। 28 सितम्बर 2010 ई. को डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र की अध्यक्षता में केदार-नागार्जुन-अज्ञेय-शमशेर जन्मशती का आयोजन किया गया। 18 जुलाई 2010 ई. को ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती के अवसर पर ‘कवि गुरु:लो प्रणाम’ का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता थे मूर्धन्य विद्वान डॉ. इन्द्रनाथ चौधरी, दिल्ली 16 सितम्बर 2012 ई. को आयोजित प्रख्यात साहित्यकार भवानी प्रसाद मिश्र की जन्मशती पर डॉ. कुश चतुर्वेदी, इटावा ने अपना वक्तव्य रखा।
प्रवचन-माला
हमारे पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित सम्पूर्ण मानवता को शांति प्रदान करने वाले हिन्दू-जीवन मूल्यों की सटीक जानकारी एवं उनके प्रति गौरव बोध तथा वर्तमान सांस्कृतिक एवं नैतिक संकटों की चुनौती को मात कर सकने वाली युगीन दृष्टि का दिग्दर्शन कराने हेतु कुमारसभा ने अपनी कौस्तुभ जयन्ती में एक संस्कार सक्षम मासिक प्रवचन-माला प्रारम्भ की। अपनी साहित्यक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक घोर व्यस्तताओं के बावजूद प्रवचन करने का दायित्व संभाला आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री ने। फरवरी 1994 ई. से प्रारंभ हुई यह मासिक प्रवचन श्रृंखला अव्याहत रूप से फरवरी 2000 ई. तक चली। इन 73 महीनों के 73 व्याख्यानों में प्रथम 18 व्याख्यान ‘ईशावास्य उपनिषद्’ पर तथा 55 व्याख्यान ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ पर केन्द्रित थे। ईशावास्योपनिषद् पर केन्द्रित व्याख्यान ‘ज्ञान और कर्म’ शीर्षक पुस्तक के रूप में लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित है। श्रीमद्भगवद्गगीता पर केन्द्रित आचार्य शास्त्री के व्याख्यानों को प्रकाशित करने के हमारे संकल्प को तब गहरा धक्का लगा जब आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री का अचानक देहावसान हो गया। लेकिन संकल्प पूर्ति हेतु पुस्तकालय कटिबद्ध हुआ और डॉ. नरेन्द्र कोहली तथा डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी के संपादन सहयोग से ‘गीता-परिक्रमा’ नामक ग्रन्थ के तीन खण्ड 2006 ई., 2008 ई. एवं 2011 ई. में प्रकाशित हुए। श्रोताओं की अभिरुचि को ध्यान में रखकर कुमारसभा ने मार्च 2000 ई. से पुन: प्रवचन-माला आरंभ की। प्रवचनकर्ता के रूप में हमें उपलब्ध हुए वेदों के गहन अध्येता एवं मीमांसाकार पं. उमाकान्त उपाध्याय। इस व्याख्यानमाला के अंतर्गत केनोपनिषद् एवं प्रश्नोपनिषद् पर प्रवचन सम्पन्न हुए।
अन्यान्य विशेष कार्यक्रम
पुस्तकालय के तत्वावधान में समय-समय पर काव्य गोष्ठियॉं एवं हिंदी दिवस समारोह का आयोजन भी किया जाता है जिसमें कोलकाता तथा बाहर के प्रतिष्ठित साहित्यकार भाग लेते हैं। ‘मेरी रचना यात्रा’ शीर्षक कार्यक्रम के अंतर्गत स्थानीय साहित्यकारों की रचनात्मक सक्रियता पर अबतक छ: गोष्ठियॉं आयोजित की जा चुकी हैं जिसमें श्री जयकिशन दास सादानी, डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी, डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र, श्री विमल लाठ, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र तथा डॉ. शिवओम अम्बर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं। हिन्दी दिवस समारोह में गत कई वर्षों से एक अभिनव प्रयोग के रूप में गायक श्री ओमप्रकाश मिश्र द्वारा हिन्दी के कवियों, साहित्यकारों एवं ग़ज़लकारों की कविताऍं, गीत एवं गज़लों की सस्वर संगीतात्मक प्रस्तुति की जाती है।
इसके अलावा राष्ट्रीय एवं सामाजिक महत्व के विषयों पर भी यह पुस्तकालय सदैव गोष्ठियों का आयोजन करता रहा है। ऐसी ही त्रिदिवसीय प्रदर्शनी एवं गोष्ठी स्व. डॉ. हरवंश लाल ओबेराय के मार्गदर्शन में फरवरी 1983 र्इ. में आयोजित की गर्इ थी।
1989-90 ई. में डॉ. हेडगेवार जन्मशती पर पुस्तकालय की ओर से एक व्याख्यानमाला प्रारम्भ की गई जिसमें आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री, डॉ. सुजित धर, श्री कु. सी. सुदर्शन एवं प्रो. राजेन्द्र सिंह प्रधान रहे।
1 सितम्बर 2002 ई. को पुस्तकालय के संस्थापक स्व. राधाकृष्ण नेवटिया का जन्मशती-समारोह आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें पद्मविभूषण नानाजी देशमुख ने विविध क्षेत्रों में कर्मरत 8 प्रतिभाशाली कार्यकर्ताओं को समादृत किया। सम्मानित प्रतिभायें थी- डॉ. चन्द्रदेव सिंह, डॉ. लालचन्द्र बगडि़या, श्री श्रीगोपाल करवा, श्री केशव प्रसाद कायां, श्रीमती मीना पुरोहित, श्री हीरालाल ‘सुजान’, श्री शंकरलाल अग्रवाल तथा श्रीमती दुर्गा व्यास।
संत, मनीषी, कुशल संगठन, राष्ट्र की एकता एवं हिन्दू समाज की एकात्मता के प्रकाश-स्तम्भ तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरुजी की जन्मशताब्दी का आयोजन 5 मार्च 2006 ई. को भव्य रूप से सम्पन्न हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी। श्रीगुरुजी पर केंद्रित अखिल भारतीय निबंध प्रतियोगिता के अंतर्गत पुस्तकालय ने प्रथम पॉंच विेजेताओं को क्रमश: एक लाख, इक्यावन हजार, पचीस हजार, ग्यारह हजार एवं पॉंच हजार रुपए को राशि प्रदान की। बड़ाबाजार लाइब्रेरी एवं कुमारसभा के सहयोग से संपन्न इस समारोह का आयोजन 18 फरवरी 2007 ई. को दिल्ली में हुआ।
विविध सामयिक प्रसंगों पर केंद्रित विचार गोष्ठियों में भारत के सर्वांगीण उन्नयन हेतु ‘स्वदेशी जागरण’ आन्दोलन के अन्तर्गत रा. स्व. संघ के श्री कु. सी. सुदर्शन एवं श्री मदनदास देवी ने दो प्रभावी व्याख्यान प्रस्तुत किए। 1993 ई. में ‘धर्म बनाम राजनीति’ विषय पर ऋषिप्रवर नानाजी देशमुख, स्वामी चिन्मयानन्द एवं श्री ललितकिशोर चतुर्वेदी के सारगर्भित व्याख्यान हुए। ‘आतंकवाद और आंतरिक सुरक्षा’ विषय पर बड़ाबाजार लाइब्रेरी के साथ पुस्तकालय के संयुक्त आयोजन 10 मार्च 2006 ई. में श्री के.पी.एस. गिल (पूर्व निदेशक, पंजाब पुलिस), श्री प्रकाश सिंह (पूर्व निदेशक: बी.एस.एफ.), जनरल शंकर रायचौधरी (पूर्व सेनाध्यक्ष) एवं श्री विभूति भूषण नंदी (पूर्व निदेशक, आई.टी. बी.पी.) ने अपने विचार रखे।
1857 की 150वीं जयंती पर ’नमन 1857’ कार्यक्रम का आयोजन श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय एवं बड़ाबाजार लाइब्रेरी के संयुक्त तत्वावधान में 10 मई 2008 ई. को आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री सभागार (बड़ाबाजार लाइब्रेरी भवन) में किया गया जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में ‘आजादी बचाओ आंदोलन’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री राजीव दीक्षित उपस्थित थे। इसी क्रम में ‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा प्रतिरोध विधेयक 2011’ का आयोजन 15 दिसम्बर 2011 ई. को हुआ जिसमें प्रखर चिंतक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमारजी ने अपने विचार रखे। ‘समकालीन चुनौतियां एवं साहित्यकार का दायित्व’ विषय पर 21 फरवरी 2013 ई. को एवं ‘हिन्दी साहित्य में राष्ट्रीय संवेदना एवं स्वाभिमान’ विषय पर 14 अगस्त 2013 ई. को प्रख्यात साहित्यकार डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने अपने ओजस्वी विचार रखे।
साहित्यकारों का वरद-हस्त
प्रारम्भ से ही साहित्यकारों की पुस्तकालय पर विशेष कृपा रही है। वे समय-समय पर आकर कार्यकर्त्ताओं का उत्साहवर्द्धन करते रहे हैं एवं इसके मंच से ज्ञानगंगा प्रवाहित करते रहे हैं। ऐसे मनीषियों में श्रीमती महादेवी वर्मा, सर्वश्री जयदयाल गोयन्दका, रामनरेश त्रिपाठी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, पुरुषोत्तमदास टंडन, नीरज, जैनेन्द्र कुमार जैन, हरिभाऊ उपाध्याय, भगवती चरण वर्मा, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, उपेन्द्रनाथ अश्क, अमृतलाल नागर, नागार्जुन, सोहनलाल द्विवेदी, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल, सत्यकेतु विद्यालंकार, वैद्य गुरुदत्त, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. जगदीश गुप्त, श्यामनारायण पाण्डेय, भवानी प्रसाद मिश्र, कन्हैयालाल सेठिया, श्री नारायण चतुर्वेदी, डॉ. हरिकृष्ण देवसरे, प्रो. कल्याणमल लोढ़ा, डॉ. रामचन्द्र तिवारी, डॉ. प्रेमशंकर, डॉ. युगेश्वर, डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित, डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, डॉ. प्रभाकर माचवे, डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ. भगवती प्रसाद सिंह, डॉ. नरेन्द्र कोहली, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय, आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री , डॉ. शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव, डॉ. शिवकुमार मिश्र, डॉ. विजय बहादुर सिंह, डॉ. शिवओम अम्बर, प्रशासक एवं साहित्यकार डॉ. शम्भुनाथ, डॉ. हरीन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. विद्यानिवास मिश्र, डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी, शिवकुमार गोयल, कवयित्री पद्मा सचदेव, श्रीमती ममता कालिया, श्री रवीन्द्र कालिया, डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी, पं. छविनाथ मिश्र, डॉ. चंद्रदेव सिंह, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, भगवती प्रसाद चौधरी, डॉ. वासुदेव पोद्दार प्रभृति विशेष उल्लेखनीय हैं।
सक्षम पुस्तकालय एवं वाचनालय
वर्तमान में कुमारसभा पुस्तकालय 1 सी, मदन मोहन बर्मन स्ट्रीट (1 तल्ला), फूलकटरा के सामने अवस्थित है। 1250 वर्ग फुट क्षेत्र में पुस्तकालय, वाचनालय एवं कार्यसमिति के कक्ष तथा कम्प्यूटर कक्ष पूर्णत: सुसज्जित हैं। कुमारसभा के पुस्तकागार में 25000 से अधिक हिन्दी की उत्तम पुस्तकें हैं एवं 90 के लगभग पत्र-पत्रिकाओं से इसका वाचनालय सुशोभित है। कुल मिलाकर यह एक जागरूक एवं सक्षम संस्थान के रूप में गतिशील है। आप सबके सहयोग से यह उत्तरोत्तर प्रगित करता जाएगा—ऐसा विश्वास है।